Dhanna Bhagat was a great mystic poet and a great Vaishnav devotee who was born in a Jaat family in Tonk district of Rajasthan. Dhanna Bhagat’s life is a living example of Krishna bhakti and unwavering dedication towards him. He was of a very simple, hardworking, and honest nature. Since childhood, he lived in the company of saints and scholars and was always ready to serve others. It is said that his devotion was so intense that he saw God even in stone. Let’s read this story further and know what special blessings God showered on his beloved devotee Dhanna Jaat.
भगत धन्ना जाट की कहानी – कैसे पत्थर से प्रकट हुए भगवान श्रीकृष्ण
धन्ना जी का जन्मस्थान और परिवार
धन्ना जी का जन्म राजस्थान के टोंक जिले के एक छोटे से गांव धुवां कलां में हुआ था। उनके पिता, रामेश्वर जाट, एक सामान्य किसान थे जो अपनी खेती-बाड़ी से परिवार का पालन-पोषण करते थे। खेती के अलावा, रामेश्वर जी के पास कई बहुत साडी गायें भी थीं। उनके परिवार में एक कुलगुरु थे, जिनका नाम पंडित त्रिलोचन जी था। पंडित जी के पास शालिग्राम जी की विशेष शक्ति थी और वे हमेशा शालिग्राम जी को अपने साथ रखते थे।
धन्ना जी के घर पंडित त्रिलोचन जी का आगमन और उनकी दिनचर्या
एक दिन पंडित त्रिलोचन जी, अपनी यात्रा के बाद, लौटते समय धुवां कलां गांव में धन्ना जी के घर ठहरने का निर्णय लिया। धन्ना जी के पिता ने पंडित जी की भरपूर सेवा की। पंडित त्रिलोचन जी की एक विशेष दिनचर्या थी। वे हर सुबह गंगा स्नान करते और उसके बाद अपनी झोली से शालिग्राम जी को निकालते। शालिग्राम जी को एक खास आसन पर बिठाकर उनका जलाभिषेक करते, उन्हें सुंदर फूल अर्पित करते और भोग लगाने के बाद ही स्वयं भोजन करते थे। बालक धन्ना पंडित जी को यह सब करते हुए देखता था, उसे भगवान की सेवा बहुत पसंद आयी।
धन्ना की मासूम ज़िद और पंडित जी का समाधान
कुछ दिन बाद जब पंडित जी उनके घर से जाने लागे तो धन्ना पंडित जी से शालिग्राम भगवान को लेने की ज़िद करने लगा और पंडित जी से बार-बार कहने लगा , “मुझे ठाकुर जी चाहिए, मुझे ठाकुर जी चाहिए!” पंडित जी ने धन्ना की मासूम जिद को सुना और सोचा कि कैसे छोटे बच्चे को देवता दे सकते हैं। उन्होंने धन्ना को समझाया, “बेटा, तुम अभी बहुत छोटे हो। तुम ठीक से सेवा नहीं कर पाओगे। जब तुम बड़े हो जाओगे, तब हम तुम्हें एक अच्छा ठाकुर जी देंगे।” लेकिन धन्ना की ज़िद इतनी मजबूत थी कि वह पंडित जी की बातों को नहीं मान रहा था। उसके माता-पिता ने भी उसे समझाने की कोशिश की। धन्ना के पिता ने कहा, “हम जाट लोग हैं, पूजा-पाठ हमारे बस की बात नहीं है। हम सीधे-साधे किसान हैं। पूजा-पाठ पंडितों का काम है। तुम पंडित जी की बात मानो, और शालिग्राम जी को छोड़ दो।” लेकिन धन्ना का रोना और उसकी जिद कम नहीं हुई।
धीरे-धीरे, पड़ोस के लोग भी आ गए और पंडित जी से अनुरोध करने लगे कि वे धन्ना की इच्छा पूरी करें। उन्होंने कहा, “बच्चों को समझाना आसान नहीं है, उसे यह नहीं पता कि सामान्य पत्थर और शालिग्राम में क्या फर्क है। आप एक शालिग्राम दे दो, चाहे वह सामान्य पत्थर ही क्यों न हो, इससे उसकी इच्छा पूरी हो जाएगी।” पंडित जी ने लोगों की बातों को ध्यान में रखा और सोचा कि यही सबसे अच्छा समाधान हो सकता है।
शालिग्राम के नाम पर दिया गया एक साधारण पत्थर
अगले दिन, पंडित जी गंगा स्नान के लिए गए और वहां से एक गोल मटोल और काला सा एक साधारण पत्थर लेकर लौटे। पंडित जी ने उस गोल मटोल पत्थर पर इत्र लगाया, उसे तिलक किया, और तुलसी की पत्तियाँ चढ़ाईं। इसके बाद, उन्होंने उसे ऊँचे आसन पर रख दिया और नीचे कपड़ा बिछाकर अपने शालिग्राम जी को नीचे विराजमान कर दिया।
फिर पंडित जी ने धन्ना को बुलाया और एक चालाकी भरे अंदाज में कहा, “देखो धन्ना, मैं तुम्हें ठाकुर जी दे दूंगा, लेकिन मेरे पास दो ठाकुर जी हैं—एक राजा ठाकुर जी और एक सिपाही ठाकुर जी। बताओ, तुम्हें कौन सा ठाकुर जी चाहिए?”
धन्ना ने मासूमियत से पूछा, “राजा ठाकुर जी और सिपाही ठाकुर जी में फर्क क्या है?” पंडित जी ने जवाब दिया, “जो ऊँचे आसन पर बैठे हैं, वे राजा ठाकुर हैं, और जो नीचे हैं, वे सिपाही ठाकुर हैं।”
धन्ना ने बिना सोचे समझे कहा, “मुझे तो राजा ठाकुर जी चाहिए।” पंडित जी खुश हुए, क्योंकि यही वह पत्थर था जिसे उन्होंने ऊँचे आसन पर रखा था। उन्होंने तुरंत साधारण पत्थर को उठाया और धन्ना को दे दिया, साथ में कहा, “धन्ना, तुमने राजा ठाकुर जी ले लिया है, लेकिन उनकी पूजा बहुत श्रद्धा से करना और भोग लगाने के बाद ही भजन ग्रहण करना।”
पंडित जी ने ये बातें मजाक में कही थीं, लेकिन धन्ना ने इन्हें गंभीरता से लिया। इस प्रकार, पंडित जी ने धन्ना की इच्छा पूरी करके अपना काम पूरा किया और अपने घर की ओर चल पड़े।
धन्ना की सरल भक्ति और ठाकुर जी के भोग का इंतजार
उधर वो अबोध बालक धन्ना उस पत्थर को प्रकार बड़ा ही प्रसन्न हुआ और बड़े ही भाव से जैसा पंडित जी करते थे इस तरह धन्ना जी उसे पत्थर की सेवा करने लगा। एक दिन, जब धन्ना अपने खेत में गायें चराने के लिए गया, उसकी माँ ने उसे बाजरे की रोटियाँ, सांग और गुड़ दिया। धन्ना ने रोटियाँ लीं और ठाकुर जी को साथ लेकर खेत की ओर बढ़ा। खेत पर पहुंचकर, जब उसे भूख लगी, तो उसने अपनी रोटियाँ निकाली। लेकिन पंडित जी की बात याद आ गई कि पहले ठाकुर जी को भोग लगाना है, फिर ही खुद खाना है।
धन्ना ने ठाकुर जी को एक कपड़े पर बिठाया और उन्हें भोग लगाने की प्रार्थना करने लगा। उसने ठान लिया कि जब तक ठाकुर जी भोग नहीं लगाएंगे, वह खुद कुछ भी नहीं खाएगा। पूरे दिन बित गया, लेकिन ठाकुर जी ने भोग नहीं लगाया। धन्ना ने अंततः रोटियाँ गायों को दे दीं और खुद भूखे पेट घर लौटा।
दूसरे दिन भी वही कहानी दोहराई गई—धन्ना ने फिर से ठाकुर जी को भोग लगाने के लिए प्रार्थना की, लेकिन ठाकुर जी ने भोग नहीं लगाया। यह सिलसिला तीन दिन तक चलता रहा। चौथे दिन, धन्ना ने फिर से अपनी माँ से रोटियाँ और गुड़ लिया और खेत की ओर चल पड़ा। खेत में पहुँचकर उसने ठाकुर जी को पुकारा और भोग लगाने की प्रार्थना की।
जब चौथे दिन भी ठाकुर जी ने भोग नहीं लगाया, तो धन्ना ने जोर-जोर से रोते हुए कहा, “ठाकुर जी, आप तो राजा ठाकुर हैं, आपको छप्पन प्रकार के भोग चढ़ते हैं, लेकिन मैं सिर्फ बाजरे की रोटी और सांग ही दे सकता हूँ। क्या आप मेरी साधारण भोग को देखकर नजरअंदाज कर रहे हैं? मैं तीन दिन से भूखा हूँ। कृपया मुझ पर दया दिखाएँ और थोड़ा सा भोग स्वीकार करें। पंडित जी ने कहा था कि पहले ठाकुर जी को खिलाना है, फिर ही खुद खाना है। इसलिए, ठाकुर जी, पहले आप भोग लगाएं, फिर मैं भी खाऊँगा।”
भोले बालक धन्ना की पुकार पर प्रकट हुए श्रीकृष्ण
धन्नाजी की भोलेपन से की गयी पुकार सुनकर करुणानिधान व्याकुल हो गए और अपने सच्चे भक्ति के आग्रह पर साक्षत् प्रकट हो गए।जब धन्ना ने भगवान श्री कृष्ण को साक्षात देखा, तो वह अत्यंत प्रसन्न हुए, लेकिन अपनी मासूमियत और भोलेपन के कारण थोड़े नाराज भी हुए। उन्होंने भगवान से कहा, “राजा ठाकुर जी, तीन दिन हो गए, मैं आपको पुकारते-पुकारते थक गया हूँ। आप आए क्यों नहीं? मैं भी भूखा हूँ। कृपया पहले भोग लगाइए, फिर मैं बाद में आपकी सेवा करूंगा। मैं तीन दिन से भूखा हूँ और मेरे पास सिर्फ बाजरे की रोटियाँ, सांग और गुड़ हैं।”
धन्ना ने तुरंत अपनी माँ द्वारा बनाई गई बाजरे की रोटियाँ, सांग और गुड़ भगवान श्री कृष्ण को अर्पित किया। भगवान कृष्ण ने बड़े प्रेम से रोटियाँ खानी शुरू कीं। पहले रोटी खाकर, उन्होंने दूसरी रोटी उठाई। जैसे ही भगवान कृष्ण तीसरी रोटी की ओर बढ़े, धन्ना ने उनका हाथ पकड़ लिया और कहा, “प्रभु, यदि आप सारी रोटियाँ खा जाएंगे, तो मेरे लिए क्या बचेगा? मैं भी भूखा हूँ और मैंने अभी तक कुछ नहीं खाया है। कृपया दो रोटियाँ मेरे लिए छोड़ दीजिए।”
धन्ना की यह मासूमियत भरी बात सुनकर भगवान कृष्ण मुस्कुराए और कहा, “ठीक है, धन्ना, मेरा पेट भर गया है। अब तुम अपनी रोटियाँ खा सकते हो।” इसके बाद, भगवान कृष्ण ने दो बची हुई रोटियाँ धन्ना को दे दीं, जिन्हें धन्ना ने खुशी-खुशी खा लिया।
जब भगवान कृष्ण बने धन्ना के गोपाल और चराने लगे गायें
इस घटना के बाद, धन्ना ने रोजाना यही नियम बना लिया कि जब भी वह गायों को चराने खेतों में जाता, तो भगवान कृष्ण के साथ भजन और पूजा करता। एक दिन भगवान कृष्ण ने धन्ना से कहा, “धन्ना, तुम रोज़ मेरी रोटियाँ खिलाते हो, और मैं उन्हें रोज़ खाता हूँ। मुझे यह अच्छा नहीं लगता। क्या तुम मुझे कोई काम दे सकते हो?
धन्ना ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, “प्रभु, क्या मैंने कोई गलती की है? आप इस तरह की बातें क्यों कर रहे हैं?” भगवान कृष्ण ने उत्तर दिया, “धन्ना, ऐसा कुछ नहीं है। मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि मुझे तुम्हारी मुफ्त की रोटियाँ खाकर अच्छा नहीं लगता। तुम मुझे कोई काम बताओ, मैं वह काम करूंगा, और तुम मुझे रोटियाँ खिलाते रहोगे।”
धन्ना ने सोचा, “प्रभु, आप तो राजा ठाकुर हैं, आप क्या काम कर सकते हैं? और मैं एक छोटा सा बालक हूँ, मैं आपको क्या काम दे सकता हूँ?” भगवान कृष्ण ने कहा, “धन्ना, मुझे गायों को चराने का बहुत अनुभव है। मैंने अपने बाबा के पास बहुत दिनों तक गायों को चराया है। मैं तुम्हारी रोटियों के बदले तुम्हारी गायों को चरा दिया करूँगा ।”
धन्ना ने कहा, “ठीक है, प्रभु, जैसी आपकी इच्छा।” इस प्रकार, भगवान कृष्ण ने धन्ना की गायों को चराना शुरू किया।
एक दिन पंडित जी, जिन्होंने धन्ना को शालिग्राम का पत्थर दिया था, धन्ना के घर पर आए। धन्ना ने पंडित जी को देख कर उन्हें प्रणाम किया। पंडित जी ने हँसी-हँसी में धन्ना से पूछा, “तुम्हारे राजा ठाकुर कहाँ हैं? उनकी सेवा ठीक से कर रहे हो न?”
धन्ना ने उत्तर दिया, “ठाकुर जी अभी गायें चराने गए हैं। वह रोज इसी समय गायें चराने जाते हैं।”
पंडित जी ने हंसते हुए कहा, “अरे, तुम अभी भी बच्चे ही हो, कैसी बात करते हो!” धन्ना के माता-पिता ने भी कहा, “वह रोज ऐसा ही कहता है। सुबह गायें चराने ले जाता है और शाम को वापस घर ले आता है।”
धन्ना ने दुखी होकर कहा, “कोई मेरी बात पर विश्वास नहीं करता।”
पंडित जी ने पूछा, “तो वह पत्थर कहाँ है, जिसे मैंने तुम्हें दिया था?”
धन्ना ने मुस्कुराते हुए कहा, “वही पत्थर तो गायें चराने गया है।” धन्ना ने पंडित जी को विस्तार से बताया कि कैसे भगवान कृष्ण ने उस पत्थर में प्रकट होकर रोज उनके साथ भोजन करते हैं और गायें भी चराते हैं।
पंडित जी को विश्वास नहीं हुआ, तो धन्ना ने आग्रह किया, “आप शाम को मेरे साथ चलें। मैं आपको भगवान से मिलवाऊंगा।”
धन्ना की भक्ति से गुरु जी को हुआ श्रीकृष्ण का साक्षात्कार
शाम को, जब धन्ना अपने गुरु जी को लेकर जंगल में गए, तो उन्होंने देखा कि गायें चर रही थीं। गुरु जी ने धन्ना से पूछा, “तुम्हारे ठाकुर जी कहाँ हैं? हमें तो दिखाई नहीं दे रहे।”
धन्ना ने ठाकुर जी की ओर इशारा करते हुए कहा, “ठाकुर जी गायों के पीछे चल रहे हैं, आपको दिख रहे हैं।”
गुरु जी ने उत्तर दिया, “हमें तो नहीं दिख रहे।”
धन्ना तुरंत भगवान कृष्ण के पास गया और विनम्रता से प्रार्थना की, “प्रभु, कृपया अपने गुरु जी को आपके दर्शन दे दीजिए।”
भगवान कृष्ण ने उत्तर दिया, “हम तुम्हारे सखा हैं, हम केवल तुम्हें ही दिखेंगे।”
धन्ना ने उत्तर दिया, “ऐसा मत कहिए। आप और मुझे मिलाने वाले हमारे गुरु जी ही हैं। उन्होंने ही हमें आपसे मिलवाया था।”
धन्ना की बात सुनकर भगवान कृष्ण प्रसन्न हुए और प्रकट हो गए। यह देख, दूर खड़े गुरु जी की आँखों में आँसू भर आए और उन्होंने धन्ना को प्रणाम करते हुए कहा, “धन्ना, तेरी भक्ति धन्य है। तूने पत्थर में से भगवान को प्रकट कर दिया।”
Dhannaji’s Birthplace and Family
Dhanna ji was born in a small village Dhuwan Kalan in Tonk district of Rajasthan. His father, Rameshwar Jaat, was a simple farmer who used to support the family through his farming. Apart from farming, Rameshwar ji also had many cows. His family had a Kulguru named Pandit Trilochan ji. Pandit Ji had the special power of Shaligram ji and he always kept Shaligram ji with him.
Pandit Trilochan’s arrival at Dhanna’s house and his daily routine
One day, while returning from his journey, Pandit Trilochan decided to stay at Dhanna’s house in Dhuwan Kalan village. Dhanna’s father served Pandit ji very well. Pandit Trilochan had a special routine. Every morning he would bathe in the Ganga and after that he would take out Shaligram from his bag. He would make Shaligram sit on a special seat and perform Jalabhishek, offer beautiful flowers to him and eat food only after offering it to God. Child Dhanna used to see Pandit ji doing all this, he liked serving God very much.
Dhanna’s innocent insistence and Panditji’s solution
A few days later, when Pandit ji was about to leave their house, Dhanna started insisting on taking Shaligram Bhagwan from Pandit ji and kept telling Pandit ji repeatedly, “I want Thakur ji, I want Thakur ji!” Pandit ji heard Dhanna’s innocent insistence and thought how can he give a deity to a small child. He explained to Dhanna, “Son, you are still very young. You will not be able to serve properly. When you grow up, we will give you a good Thakur ji.” But Dhanna’s stubbornness was so strong that he was not listening to Pandit ji. His parents also tried to convince him. Dhanna’s father said, “We are Jat people, Puja-Paath is not our cup of tea. We are simple farmers. Puja-Paath is the work of Pandits. You listen to Pandit ji, and leave Shaligram ji.” But Dhanna’s crying and his stubbornness did not reduce.
Gradually, people from the neighbourhood also came and started requesting Panditji to fulfill Dhanna’s wish. They said, “It is not easy to explain to children, they do not know the difference between a normal stone and a Shaligram. You give him a Shaligram, even if it is a normal stone, it will fulfill his wish.” Panditji took people’s words into consideration and thought that this could be the best solution.
An ordinary stone given in the name of Shaligram
The next day, Panditji went to bathe in the Ganga and returned with a plump, black stone. Panditji applied perfume on the plump stone, applied tilak on it, and offered Tulsi leaves. After this, he placed it on a high seat and placed his Shaligram Ji on the floor, spreading a cloth underneath.
Then Panditji called Dhanna and said in a cunning manner, “Look Dhanna, I will give you Thakurji, but I have two Thakurjis—one Raja Thakurji and one Sipahi Thakurji. Tell me, which Thakurji do you want?”
Danna innocently asked, “What is the difference between Raja Thakurji and Sipahi Thakurji?” Panditji replied, “The one who is sitting on the high seat is Raja Thakurji, and the one below is Sipahi Thakurji.”
Danna said without thinking, “I want Raja Thakurji.” Panditji was happy, because this was the stone he had placed on the high seat. He immediately picked up the ordinary stone and gave it to Dhanna, along with saying, “Dhanna, you have taken Raja Thakur ji, but worship him with great devotion and accept the bhajan only after offering the bhog.”
Pandit ji had said these things jokingly, but Dhanna took them seriously. Thus, Pandit ji completed his work by fulfilling Dhanna’s wish and started towards his home.
Dhanna’s simple devotion and waiting for Thakurji’s offering
On the other hand, the innocent child Dhanna was very happy to see that stone and with great emotion, Dhanna ji started serving the stone in the same way as Pandit ji used to do. One day, when Dhanna went to graze the cows in his field, his mother gave him millet rotis, sang and jaggery. Dhanna took the rotis and headed towards the field taking Thakur ji with him. On reaching the field, when he felt hungry, he took out his rotis. But he remembered Pandit ji’s words that first he has to offer bhog to Thakur ji, then only he has to eat.
Danna made Thakur ji sit on a cloth and started praying to him to offer bhog. He resolved that till Thakur ji does not offer bhog, he himself will not eat anything. The whole day passed, but Thakur ji did not offer bhog. Dhanna finally gave the rotis to the cows and himself returned home hungry.
The same story was repeated the next day too—Dhanna again prayed to Thakur ji to offer bhog, but Thakur ji did not offer bhog. This continued for three days. On the fourth day, Dhanna again took rotis and jaggery from his mother and started towards the field. Reaching the field, he called Thakur ji and prayed for offering.
When Thakur ji did not offer the offering even on the fourth day, Dhanna cried loudly and said, “Thakur ji, you are a king Thakur, you are offered fifty-six types of offerings, but I can only offer millet roti and sang. Are you ignoring my simple offering? I have been hungry for three days. Please show mercy on me and accept a little offering. Pandit ji had said that first Thakur ji has to be fed, then only one has to eat. Therefore, Thakur ji, first you offer the offering, then I will also eat.”
Lord Krishna appeared on the call of the innocent boy Dhanna
Hearing Dhannaji’s innocent call, Karunanidhan became distraught and on the insistence of his true devotion, appeared in person. When Dhanna saw Lord Shri Krishna in person, he was extremely happy, but also a little angry due to his innocence and naivety. Happened. He said to God, “King Thakur ji, it has been three days, I am tired of calling you. Why didn’t you come? I am also hungry. Please offer the food first, then I will serve you later. I have been hungry for three days and I have only millet rotis, sang and jaggery.”
Dhanna immediately offered the millet rotis, sang and jaggery made by his mother to Lord Shri Krishna. Lord Krishna started eating rotis with great love. After eating the first loaf of bread, he picked up the second loaf. As Lord Krishna moved towards the third roti, Dhanna held his hand and said, “Lord, if you eat all the rotis, what will be left for me? I am also hungry and I have not eaten anything yet. Please leave two rotis for me.”
Hearing this innocent talk of Dhanna, Lord Krishna smiled and said, “Okay, Dhanna, I am full. Now you can eat your rotis.” After this, Lord Krishna gave the two remaining rotis to Dhanna, which Dhanna happily ate.
When Lord Krishna became Dhanna’s Gopal and started grazing the cows
After this incident, Dhanna made it a daily rule to sing bhajans and worship Lord Krishna whenever he went to the fields to graze the cows. One day Lord Krishna said to Dhanna, “Dhanna, you feed me rotis every day, and I eat them every day. I don’t like it. Can you give me some work?”
Dhanna asked in surprise, “Prabhu, have I done any mistake? Why are you saying such things?” Lord Krishna replied, “Dhanna, there is nothing like that. I just want to say that I don’t like eating your free rotis. You tell me any work, I will do that work, and you will keep feeding me rotis.”
Dhanna thought, “Prabhu, you are a king, what work can you do? And I am a small child, what work can I give you?” Lord Krishna said, “Dhanna, I have a lot of experience in grazing cows. I have grazed cows for many days with my Baba. I will graze your cows in exchange for your rotis.”
Danna said, “Okay, Lord, as you wish.” Thus, Lord Krishna started grazing Dhanna’s cows.
One day the Panditji, who had given Dhanna the Shaligram stone, came to Dhanna’s house. Dhanna saw the Panditji and bowed to him. The Panditji jokingly asked Dhanna, “Where is your king Thakur? Are you serving him properly?”
Danna replied, “Thakurji has just gone to graze the cows. He goes to graze the cows at this time every day.”
The Panditji laughed and said, “Hey, you are still a child, what are you saying!” Dhanna’s parents also said, “He says the same thing every day. He takes the cows to graze in the morning and brings them back home in the evening.”
Danna said sadly, “No one believes me.”
Panditji asked, “So where is that stone that I gave you?”
Danna smiled and said, “That stone has gone to graze the cows.” Dhanna told Panditji in detail how Lord Krishna appeared in that stone and had food with him every day and also grazed the cows.
Panditji did not believe it, so Dhanna requested, “Come with me in the evening. I will introduce you to God.”
Due to Dhanna’s devotion, Guruji had the vision of Lord Krishna
In the evening, when Dhanna went to the forest with his Guru, he saw that the cows were grazing. Guru asked Dhanna, “Where is your Thakur Ji? I cannot see him.”
Danna pointed towards Thakur Ji and said, “Thakur Ji is walking behind the cows, you can see him.”
Guru replied, “I cannot see him.”
Danna immediately went to Lord Krishna and humbly prayed, “Prabhu, please let your Guru Ji appear before you.”
Lord Krishna replied, “I am your friend, I will be visible only to you.”
Danna replied, “Don’t say that. It is our Guru Ji who brought you and me together. He introduced us to you.”
Lord Krishna was pleased to hear Dhanna and appeared. Seeing this, Guru Ji, who was standing far away, had tears in his eyes and bowing to Dhanna, he said, “Danna, your devotion is blessed. You have made God appear from the stone.”
ધન્ના જીનું જન્મસ્થળ અને પરિવાર
ધન્નાજીનો જન્મ રાજસ્થાનના ટોંક જિલ્લાના એક નાનકડા ગામ ધુવન કલાનમાં થયો હતો. તેમના પિતા રામેશ્વર જાટ એક સામાન્ય ખેડૂત હતા જેઓ ખેતી દ્વારા તેમના પરિવારનું ભરણપોષણ કરતા હતા. ખેતી ઉપરાંત રામેશ્વરજી પાસે ઘણી ગાયો પણ હતી. તેમના પરિવારના એક કુલગુરુ હતા, જેનું નામ પંડિત ત્રિલોચનજી હતું. પંડિતજી પાસે શાલિગ્રામજીની વિશેષ શક્તિ હતી અને તેઓ હંમેશા શાલિગ્રામજીને પોતાની સાથે રાખતા હતા.
ધન્નાજીના ઘરે પંડિત ત્રિલોચનજીનું આગમન અને તેમની દિનચર્યા
એક દિવસ પંડિત ત્રિલોચનજી, જ્યારે તેમની યાત્રા કરીને પરત ફરી રહ્યા હતા, ત્યારે તેમણે ધુવન કલાન ગામમાં ધન્નાજીના ઘરે રહેવાનું નક્કી કર્યું. ધન્નાજીના પિતાએ પંડિતજીની ખૂબ સેવા કરી. પંડિત ત્રિલોચનજીની દિનચર્યા વિશેષ હતી. તે દરરોજ સવારે ગંગામાં સ્નાન કરતા અને પછી પોતાની થેલીમાંથી શાલિગ્રામજીને બહાર કાઢતા. તેઓ શાલિગ્રામજીને વિશેષ આસન પર બેસાડીને , તેમના પર જલાભિષેક કરતા, તેમને સુંદર ફૂલ અર્પણ કરતા અને તેમને ભોગ લગાવ્યા પછી જ પોતે ભોજન ગ્રહણ કરતા. બાળક ધન્ના પંડિતજીને આ બધું કરતા જોતો, તેને ભગવાનની સેવા કરવી ખૂબ ગમતી હતી.
ધન્નાની નિર્દોષ જીદ અને પંડિતજીનો ઉકેલ
થોડા દિવસો પછી જ્યારે પંડિતજી તેમનું ઘર છોડી જવા લાગ્યા ત્યારે ધન્નાજી એ પંડિતજી પાસેથી ભગવાન શાલિગ્રામ લેવાની જીદ કરવા લાગ્યા અને પંડિતજીને વારંવાર કહેવા લાગ્યા, “મારે ઠાકુરજી જોઈએ છે, મારે ઠાકુરજી જોઈએ છે!” પંડિતજીએ ધન્નાનો નિર્દોષ આગ્રહ સાંભળ્યો અને વિચાર્યું કે નાના બાળકને દેવતા કેવી રીતે આપી શકાય. તેણે ધન્નાને સમજાવ્યું, “દીકરા, તું હજી ઘણો નાનો છે. તુ યોગ્ય રીતે સેવા આપી શકીશ નહીં. જ્યારે તુ મોટા થશો ત્યારે અમે તમને સારા ઠાકુરજી આપીશું.” પણ ધન્નાની જીદ એટલી મજબૂત હતી કે તે પંડિતજીની વાત સાંભળતો ન હતો. તેના માતા-પિતાએ પણ તેને સમજાવવાનો ખુબ પ્રયાસ કર્યો. ધન્નાના પિતાએ કહ્યું, “આપણે જાટ લોકો છીએ, પૂજા-અર્ચના આપણે સારી રીતે ના કરી શકીએ. આપણે દા ખેડૂતો છીએ. પૂજાએ પંડિતોનું કામ છે. તુ પંડિતજીને સાંભળ અને શાલિગ્રામજીને છોડી દે. પણ ધન્નાનું રડવું અને તેની જીદ શમી નહિ.
ધીમે-ધીમે આજુબાજુના લોકો પણ આવ્યા અને પંડિતજીને ધન્નાની ઈચ્છા પૂરી કરવા વિનંતી કરવા લાગ્યા. તેમણે કહ્યું, “બાળકને સમજાવવું સરળ નથી, તે નથી જાણતો કે સામાન્ય પથ્થર અને શાલિગ્રામમાં શું ફરક છે. તમે શાલિગ્રામ આપો, ભલે તે સામાન્ય પથ્થર હોય, તે તેની ઇચ્છા પૂરી કરશે.” પંડિતજીએ લોકોના મંતવ્યો ધ્યાનમાં લીધા અને વિચાર્યું કે આ શ્રેષ્ઠ ઉપાય હોઈ શકે છે.
શાલિગ્રામના નામે આપ્યો સામાન્ય પથ્થર
બીજે દિવસે પંડિતજી ગંગામાં સ્નાન કરવા ગયા અને એક સાદો, ગોળ અને કાળો પથ્થર લઈને પાછા ફર્યા. પંડિતજીએ તે ગોળ પથ્થર પર અત્તર લગાવ્યું, તેના પર તિલક લગાવ્યું અને તુલસીના પાન ચઢાવ્યા. આ પછી તેમણે તેને એક ઉંચા આસન પર બેસાડી અને નીચે કપડું ફેલાવીને પોતાના શાલિગ્રામજીને નીચે બેસાડ્યા.
પછી પંડિતજીએ ધન્નાને બોલાવ્યો અને ધૂર્ત રીતે કહ્યું, “જો ધન્ના, હું તને ઠાકુરજી આપીશ, પણ મારી પાસે બે ઠાકુરજી છે – એક રાજા ઠાકુરજી અને એક સૈનિક ઠાકુરજી. મને કહે, તારે કયા ઠાકુરજી જોઈએ છે?”
ધન્નાએ નિર્દોષતાથી પૂછ્યું, “રાજા ઠાકુરજી અને સિપાહી ઠાકુર જીમાં શું તફાવત છે?” પંડિતજીએ જવાબ આપ્યો, “જેઓ ઉંચી આસન પર બેઠા છે તે રાજા ઠાકુર છે અને જે નીચે છે તે સિપાહી ઠાકુર છે.”
ધન્નાએ વિચાર્યા વિના કહ્યું, “મારે રાજા ઠાકુરજી જોઈએ છે.” પંડિતજી ખુશ હતા, કારણ કે આ એ જ પથ્થર હતો જેને તેમણે ઊંચા પગથિયાં પર રાખ્યો હતો. તેમણે તરત જ સામાન્ય પથ્થર ઉપાડ્યો અને ધન્નાને આપતાં કહ્યું, “ધન્ના, તે રાજા ઠાકુરજીને લઈ લીધા છે, પરંતુ તેમની ખૂબ ભક્તિથી પૂજા કરજે અને તેમને ભોગ ચઢાવ્યા પછી જ તુ ભોજન ગ્રહણ કરજે. “
પંડિતજીએ આ વાતો મજાકમાં કહી હતી, પરંતુ ધન્નાએ તેને ગંભીરતાથી લીધી હતી. આમ, પંડિતજીએ ધન્નાની ઈચ્છા પૂરી કરી અને તેમનું કાર્ય પૂર્ણ કરીને પોતાના ઘર તરફ પ્રયાણ કર્યું.
ધન્નાની સરળ ભક્તિ અને ઠાકુરજીના ભોગ ગ્રહણ કરવાની રાહ જોવી
બીજી તરફ, તે માસૂમ બાળક ધન્ના પથ્થરથી ખૂબ જ ખુશ હતો અને ખૂબ જ ભક્તિભાવથી ધન્નાજીએ પંડિતજીની જેમ જ તે પથ્થરની સેવા કરવાનું શરૂ કર્યું. એક દિવસ ધન્ના પોતાના ખેતરમાં ગાયો ચરાવવા ગયો ત્યારે તેની માતાએ તેને બાજરીના રોટલા, સાંગ અને ગોળ આપ્યો. ધન્ના રોટલી લઈને ઠાકુરજીને સાથે લઈને ખેતર તરફ આગળ વધ્યા. ખેતરમાં પહોંચ્યા પછી જ્યારે તેને ભૂખ લાગી ત્યારે તેણે રોટલી કાઢી. પણ તેને પંડિતજીના શબ્દો યાદ આવ્યા કે પહેલા તમારે ઠાકુરજીને ભોજન અર્પણ કરવું પડશે અને પછી જ તારે ખાવું પડશે.
ધન્નાએ ઠાકુરજીને એક કપડા પર બેસાડ્યા અને તેમને ભોજન ગ્રહણ કરવાની વિનંતી કરવા લાગ્યા. તેણે નક્કી કર્યું કે જ્યાં સુધી ઠાકુરજી ભોજન ગ્રહણ નહિ કરે ત્યાં સુધી તે પોતે કંઈ ખાશે નહીં. આખો દિવસ વીતી ગયો, પણ ઠાકુરજીએ ભોજન ગ્રહણ ન કર્યું. ધન્નાએ આખરે ગાયોને રોટલી આપી અને ભૂખ્યા ઘરે પરત ફર્યા.
બીજા દિવસે પણ આ જ વાર્તાનું પુનરાવર્તન થયું – ધન્નાએ ફરીથી ઠાકુરજીને ભોજન ગ્રહણ કરવા વિનંતી કરી, પરંતુ ઠાકુરજીએ ભોજન ગ્રહણ ન કર્યું . આ ક્રમ ત્રણ દિવસ સુધી ચાલ્યો. ચોથા દિવસે, ધન્નાએ ફરીથી તેની માતા પાસેથી રોટલી અને ગોળ લીધો અને ખેતર તરફ પ્રયાણ કર્યું. ખેતરમાં પહોંચ્યા પછી, તેણે ઠાકુરજીને બોલાવ્યા અને તેમને ભોજન ગ્રહણ કરવા વિનંતી કરી.
જ્યારે ચોથા દિવસે પણ ઠાકુરજીએ ભોજન ગ્રહણ ન કર્યું ત્યારે ધન્ના મોટેથી રડી પડ્યા અને બોલ્યા, “ઠાકુરજી, તમે રાજા ઠાકુર છો, છપ્પન પ્રકારના ભોગ તમને ચઢાવવામાં આવે છે, પણ હું માત્ર બાજરીની રોટલી અને ગોળ આપું છું.” શું તમે મારા સામાન્ય ભોજનને અવગણી રહ્યા છો? હું ત્રણ દિવસથી ભૂખ્યો છું. કૃપા કરીને મારા પર દયા કરો અને થોડું ભોજન ગ્રહણ કરો. પંડિતજીએ કહ્યું હતું કે પહેલા તમારે ઠાકુરજીને ભોગ લગાવવાનો અને પછી જ તારે ખાવાનું છે. માટે ઠાકુરજી, પહેલા તમે ભોજન કરો, પછી હું પણ ખાઈશ.”
નિર્દોષ બાળક ધન્નાના આહ્વાન પર શ્રી કૃષ્ણ પ્રગટ થયા
ધન્નાજીની નિર્દોષ પુકાર સાંભળીને, કરુણાનિધન વ્યથિત થઈ ગયા અને તેમની સાચી ભક્તિના આગ્રહ પર સાક્ષાત પ્રગટ થઇ ગયા. જ્યારે ધન્નાએ ભગવાન શ્રી કૃષ્ણને રૂબરૂમાં જોયા, ત્યારે તેઓ અત્યંત ખુશ થયા, પરંતુ તેમની નિર્દોષતા અને ભોળાપણાને કારણે થોડો ગુસ્સો પણ આવ્યો. તેણે ભગવાનને કહ્યું, “રાજા ઠાકુરજી, ત્રણ દિવસ થઈ ગયા, હું તમને બોલાવીને થાકી ગયો. તમે કેમ ન આવ્યા? મને પણ ભૂખ લાગી છે. મહેરબાની કરીને પહેલા ભોજન ગ્રહણ કરો, પછી હું તમને સેવા આપીશ. હું ત્રણ દિવસથી ભૂખ્યો છું અને મારી પાસે માત્ર બાજરીના રોટલા, સાંગ અને ગોળ છે.
ધન્નાએ તરત જ ભગવાન શ્રી કૃષ્ણને તેની માતા દ્વારા બનાવેલ બાજરીના રોટલા, સાંગ અને ગોળ અર્પણ કર્યા. ભગવાન શ્રીકૃષ્ણએ ખૂબ પ્રેમથી રોટલી ખાવાનું શરૂ કર્યું. પહેલી રોટલી ખાધા પછી તેણે બીજી રોટલી ઉપાડી. ભગવાન કૃષ્ણ ત્રીજી રોટલી તરફ આગળ વધ્યા, ત્યાં ધન્નાએ તેમનો હાથ પકડીને કહ્યું, “ભગવાન, જો તમે બધી રોટલી ખાઈ લો તો મારા માટે શું બચશે? મને પણ ભૂખ લાગી છે અને મેં હજી કશું ખાધું નથી. મહેરબાની કરીને મારા માટે બે રોટલી છોડી દો.”
ધન્નાની આ નિર્દોષ વાત સાંભળીને ભગવાન કૃષ્ણ હસ્યા અને બોલ્યા, “ઠીક છે, ધન્ના, મારું પેટ ભરાઈ ગયું છે. હવે તુ તારી રોટલી ખાઈ શકે છે. ” આ પછી ભગવાન કૃષ્ણએ બાકીની બે રોટલી ધન્નાને આપી, જે ધન્નાએ ખુશીથી ખાધી.
જ્યારે ભગવાન કૃષ્ણ ધન્ના માટે ગોપાલ બન્યા અને ગાયો ચરાવવા લાગ્યા
આ ઘટના પછી ધન્નાએ રોજનો નિયમ બનાવી દીધો કે જ્યારે પણ તે ગાયો ચરાવવા ખેતરમાં જાય ત્યારે ભગવાન કૃષ્ણ સાથે ભોજન અને પૂજા કરે. એક દિવસ ભગવાન કૃષ્ણએ ધન્નાને કહ્યું, “ધન્ના, તું મને રોજ રોટલી ખવડાવે છે અને હું તે રોજ ખાઉં છું. મને તે સારું નથી લાગતું. શું તુ મને કોઈ કામ આપી શકે ?
ધન્નાને આશ્ચર્ય થી પૂછ્યું, “ભગવાન, મારાથી કંઈ ભૂલ થઈ છે? તમે આવી રીતે કેમ વાત કરો છો?” ભગવાન કૃષ્ણે જવાબ આપ્યો, “ધન્ના, એવું કંઈ નથી. હું ફક્ત એટલું જ કહેવા માંગુ છું કે મને તારી મફતની રોટલી ખાવાનું સારું નથી લાગતું. તુ મને કોઈ કામ કહે , હું એ કામ કરી દઈશ અને તુ મને રોટલી ખવડાવતો રહેજે.”
ધન્નાએ વિચાર્યું, “ભગવાન, તમે તો રાજા ઠાકુર છો, તમે શું કામ કરી શકો? અને હું નાનો બાળક છું, હું તમને શું કામ આપી શકું?” ભગવાન કૃષ્ણએ કહ્યું, “ધન્ના, મને ગાયો ચરાવવાનો ઘણો અનુભવ છે. મેં મારા પિતા સાથે ઘણા દિવસોથી ગાયો ચરાવી છે. હું તારી રોટલીના બદલામાં તારી ગાયો ચરાવીશ.”
ધન્નાએ કહ્યું, “ઠીક છે, પ્રભુ, જેવી તમારી ઈચ્છા.” આમ, ભગવાન કૃષ્ણએ ધન્નાની ગાયો ચરાવવાનું શરૂ કર્યું.
એક દિવસ પંડિતજી, જેમણે ધન્નાને શાલિગ્રામ પથ્થર આપ્યો હતો, ધન્નાના ઘરે આવ્યા. ધન્નાએ પંડિતજીને જોયા અને તેમને વંદન કર્યા. પંડિતજીએ હસીને ધન્નાને પૂછ્યું, “તારા રાજા ઠાકુર ક્યાં છે? શું તુ તેની યોગ્ય રીતે સેવા કરી રહ્યો છે?
ધન્નાએ જવાબ આપ્યો, “ઠાકુરજી હમણાં જ ગાયો ચરાવવા ગયા છે. તે દરરોજ આ સમયે ગાયો ચરાવવા જાય છે.”
પંડિતજીએ હસીને કહ્યું , “અરે, તું હજી બાળક જ છે, કેવા પ્રકારની વાતો કરે છે!” ધન્નાના માતા-પિતાએ પણ કહ્યું, “તે રોજ આવું કહે છે. તે સવારે ગાયોને ચરાવવા ખેતરમાં મૂકી આવે છે અને સાંજે જઇને ઘરે પરત લાવે છે.”
ધન્નાએ ઉદાસીથી કહ્યું, “મારી વાતો પર કોઈ વિશ્વાસ નથી કરતુ.”
પંડિતજીએ પૂછ્યું, “તો મેં તને જે પથ્થર આપ્યો હતો તે ક્યાં છે?”
ધન્નાએ હસતાં હસતાં કહ્યું, “હું તેમની જ વાત કરી રહ્યો છું કે તે ગાયો ચરાવવા ગયા છે.” ધન્નાએ પંડિતજીને વિગતવાર જણાવ્યું કે કેવી રીતે તેને ભગવાન કૃષ્ણ તે પથ્થરમાં દેખાયા હતા અને તેની સાથે દરરોજ ભોજન ખાતા અને ગાયો પણ ચરાવે છે.
પંડિતજી માન્યા નહિ, તેથી ધન્નાએ વિનંતી કરી, “તમે સાંજે મારી સાથે આવો. હું તમને ભગવાનનો પરિચય કરાવીશ.”
ધન્નાની ભક્તિ દ્વારા ગુરુજીને શ્રી કૃષ્ણના દર્શન થયા
સાંજે, જ્યારે ધન્ના તેના ગુરુજી સાથે જંગલમાં ગયો, ત્યારે તેમણે જોયું કે ગાયો ચરતી હતી. ગુરુજીએ ધન્નાને પૂછ્યું, “તમારા ઠાકુરજી ક્યાં છે? મને તો દેખાતા નથી.”
ઠાકુરજી તરફ ઈશારો કરીને ધન્નાએ કહ્યું, “ઠાકુરજી ગાયોની પાછળ ચાલી રહ્યા છે, શુ તમે જોઈ શકો છો?”
ગુરુજીએ જવાબ આપ્યો, “મને હજુ નથી દેખાતા.”
ધન્ના તરત જ ભગવાન કૃષ્ણ પાસે ગયા અને નમ્રતાપૂર્વક પ્રાર્થના કરી, “ભગવાન, કૃપા કરીને મારા ગુરુજીને તમારા દર્શન આપો.”
ભગવાન કૃષ્ણએ જવાબ આપ્યો, “તુ મારો મિત્ર છે, હું ફક્ત તને જ દેખાઈશ.”
ધન્નાએ જવાબ આપ્યો, “એવું ના બોલ. અમારા ગુરુજી એ જ છે જેમણે તમને અને મને એક સાથે લાવ્યા. તેણે જ તમારો પરિચય કરાવ્યો હતો.”
ભગવાન શ્રીકૃષ્ણ ધન્નાની વાત સાંભળીને પ્રસન્ન થયા અને પ્રગટ થયા. આ જોઈને ગુરુજીની આંખો આંસુઓથી ભરાઈ ગઈ અને તેમણે ધન્નાને પ્રણામ કર્યા અને કહ્યું, “ધન્ના, તમારી ભક્તિ ધન્ય છે. તે ભગવાનને પથ્થરમાંથી પ્રગટ કર્યા.”