भगत धन्ना जाट की कहानी – कैसे पत्थर से प्रकट हुए भगवान श्रीकृष्ण

भक्त धन्ना जाट की कहानी - कैसे पत्थर से प्रकट हुए भगवान श्रीकृष्ण

संत धन्ना भगत एक महान रहस्यवादी कवि और गहरे वैष्णव भक्त थे, जिनका जन्म राजस्थान के टोंक जिले में एक साधारण जाट परिवार में हुआ था। उनका जीवन कृष्ण भक्ति और ईश्वर के प्रति अटूट समर्पण का उज्ज्वल उदाहरण माना जाता है। धन्ना भगत स्वभाव से अत्यंत सरल, ईमानदार और परिश्रमी थे। बचपन से ही वे संतों और विद्वानों की संगति में रहते और दूसरों की सेवा को ही अपना धर्म मानते थे।

कहा जाता है कि उनकी भक्ति इतनी निष्कपट और प्रबल थी कि उन्हें एक साधारण पत्थर में भी भगवान का दर्शन हो जाता था। आइए इस कथा को आगे पढ़ते हैं और जानें कि भगवान ने अपने प्रिय भक्त धन्ना जाट पर किस प्रकार विशेष कृपा बरसाई।

धुवां कलाँ गाँव में पंडित त्रिलोचन, धन्ना भगत के घर पहुँचकर वहीं ठहरने का निर्णय लेते हुए – भक्तिमय ग्रामीण दृश्य।

धन्ना जी का जन्मस्थान और परिवार

धन्ना जी का जन्म राजस्थान के टोंक जिले के एक छोटे से गांव धुवां कलां में हुआ था। उनके पिता, रामेश्वर जाट, एक सामान्य किसान थे जो अपनी खेती-बाड़ी से परिवार का पालन-पोषण करते थे। खेती के अलावा, रामेश्वर जी के पास कई बहुत साडी गायें भी थीं। उनके परिवार में एक कुलगुरु थे, जिनका नाम पंडित त्रिलोचन जी था। पंडित जी के पास शालिग्राम जी की विशेष शक्ति थी और वे हमेशा शालिग्राम जी को अपने साथ रखते थे।

पंडित त्रिलोचन शालिग्राम का जलाभिषेक करते हुए, सुंदर फूल अर्पित करते और भगवान को भोग लगाकर ही भोजन करते।

धन्ना जी के घर पंडित त्रिलोचन जी का आगमन और उनकी दिनचर्या

एक दिन पंडित त्रिलोचन जी, अपनी यात्रा के बाद, लौटते समय धुवां कलां गांव में धन्ना जी के घर ठहरने का निर्णय लिया। धन्ना जी के पिता ने पंडित जी की भरपूर सेवा की। पंडित त्रिलोचन जी की एक विशेष दिनचर्या थी। वे हर सुबह गंगा स्नान करते और उसके बाद अपनी झोली से शालिग्राम जी को निकालते। शालिग्राम जी को एक खास आसन पर बिठाकर उनका जलाभिषेक करते, उन्हें सुंदर फूल अर्पित करते और भोग लगाने के बाद ही स्वयं भोजन करते थे। बालक धन्ना पंडित जी को यह सब करते हुए देखता था, उसे भगवान की सेवा बहुत पसंद आयी।

धन्ना पंडित जी से शालिग्राम भगवान माँगते हुए, बार-बार ‘मुझे ठाकुरजी चाहिए’ कहते हुए, और माता-पिता व पंडित जी उसे समझाने की कोशिश करते हुए।

धन्ना की मासूम ज़िद और पंडित जी का समाधान

कुछ दिन बाद जब पंडित जी उनके घर से जाने लागे तो धन्ना पंडित जी से शालिग्राम भगवान को लेने की ज़िद करने लगा और पंडित जी से बार-बार कहने लगा , “मुझे ठाकुर जी चाहिए, मुझे ठाकुर जी चाहिए!” पंडित जी ने धन्ना की मासूम जिद को सुना और सोचा कि कैसे छोटे बच्चे को देवता दे सकते हैं। उन्होंने धन्ना को समझाया, “बेटा, तुम अभी बहुत छोटे हो। तुम ठीक से सेवा नहीं कर पाओगे। जब तुम बड़े हो जाओगे, तब हम तुम्हें एक अच्छा ठाकुर जी देंगे।”

लेकिन धन्ना की ज़िद इतनी मजबूत थी कि वह पंडित जी की बातों को नहीं मान रहा था। उसके माता-पिता ने भी उसे समझाने की कोशिश की। धन्ना के पिता ने कहा, “हम जाट लोग हैं, पूजा-पाठ हमारे बस की बात नहीं है। हम सीधे-साधे किसान हैं। पूजा-पाठ पंडितों का काम है। तुम पंडित जी की बात मानो, और शालिग्राम जी को छोड़ दो।” लेकिन धन्ना का रोना और उसकी जिद कम नहीं हुई।

धीरे-धीरे, पड़ोस के लोग भी आ गए और पंडित जी से अनुरोध करने लगे कि वे धन्ना की इच्छा पूरी करें। उन्होंने कहा, “बच्चों को समझाना आसान नहीं है, उसे यह नहीं पता कि सामान्य पत्थर और शालिग्राम में क्या फर्क है। आप एक शालिग्राम दे दो, चाहे वह सामान्य पत्थर ही क्यों न हो, इससे उसकी इच्छा पूरी हो जाएगी।” पंडित जी ने लोगों की बातों को ध्यान में रखा और सोचा कि यही सबसे अच्छा समाधान हो सकता है।

पंडित जी धन्ना के शालिग्राम भगवान को ऊँचे आसन पर रखते हुए और अपने शालिग्राम को नीचे जमीन पर कपड़ा बिछाकर स्थापित करते हुए।

शालिग्राम के नाम पर दिया गया एक साधारण पत्थर

अगले दिन, पंडित जी गंगा स्नान के लिए गए और वहां से एक गोल मटोल और काला सा एक साधारण पत्थर लेकर लौटे। पंडित जी ने उस गोल मटोल पत्थर पर इत्र लगाया, उसे तिलक किया, और तुलसी की पत्तियाँ चढ़ाईं। इसके बाद, उन्होंने उसे ऊँचे आसन पर रख दिया और नीचे कपड़ा बिछाकर अपने शालिग्राम जी को नीचे विराजमान कर दिया।

फिर पंडित जी ने धन्ना को बुलाया और एक चालाकी भरे अंदाज में कहा, “देखो धन्ना, मैं तुम्हें ठाकुर जी दे दूंगा, लेकिन मेरे पास दो ठाकुर जी हैं—एक राजा ठाकुर जी और एक सिपाही ठाकुर जी। बताओ, तुम्हें कौन सा ठाकुर जी चाहिए?”

धन्ना ने मासूमियत से पूछा, “राजा ठाकुर जी और सिपाही ठाकुर जी में फर्क क्या है?” पंडित जी ने जवाब दिया, “जो ऊँचे आसन पर बैठे हैं, वे राजा ठाकुर हैं, और जो नीचे हैं, वे सिपाही ठाकुर हैं।”

धन्ना ने बिना सोचे समझे कहा, “मुझे तो राजा ठाकुर जी चाहिए।” पंडित जी खुश हुए, क्योंकि यही वह पत्थर था जिसे उन्होंने ऊँचे आसन पर रखा था। उन्होंने तुरंत साधारण पत्थर को उठाया और धन्ना को दे दिया, साथ में कहा, “धन्ना, तुमने राजा ठाकुर जी ले लिया है, लेकिन उनकी पूजा बहुत श्रद्धा से करना और भोग लगाने के बाद ही भजन ग्रहण करना।”

पंडित जी ने ये बातें मजाक में कही थीं, लेकिन धन्ना ने इन्हें गंभीरता से लिया। इस प्रकार, पंडित जी ने धन्ना की इच्छा पूरी करके अपना काम पूरा किया और अपने घर की ओर चल पड़े।

धन्ना ने ठाकुर जी को कपड़े पर बैठाया और भोग अर्पित करने के लिए भक्ति भाव से प्रार्थना करने लगा।

धन्ना की सरल भक्ति और ठाकुर जी के भोग का इंतजार

उधर वो अबोध बालक धन्ना उस पत्थर को प्रकार बड़ा ही प्रसन्न हुआ और बड़े ही भाव से जैसा पंडित जी करते थे इस तरह धन्ना जी उसे पत्थर की सेवा करने लगा। एक दिन, जब धन्ना अपने खेत में गायें चराने के लिए गया, उसकी माँ ने उसे बाजरे की रोटियाँ, सांग और गुड़ दिया। धन्ना ने रोटियाँ लीं और ठाकुर जी को साथ लेकर खेत की ओर बढ़ा। खेत पर पहुंचकर, जब उसे भूख लगी, तो उसने अपनी रोटियाँ निकाली। लेकिन पंडित जी की बात याद आ गई कि पहले ठाकुर जी को भोग लगाना है, फिर ही खुद खाना है।

धन्ना ने ठाकुर जी को एक कपड़े पर बिठाया और उन्हें भोग लगाने की प्रार्थना करने लगा। उसने ठान लिया कि जब तक ठाकुर जी भोग नहीं लगाएंगे, वह खुद कुछ भी नहीं खाएगा। पूरे दिन बित गया, लेकिन ठाकुर जी ने भोग नहीं लगाया। धन्ना ने अंततः रोटियाँ गायों को दे दीं और खुद भूखे पेट घर लौटा।

दूसरे दिन भी वही कहानी दोहराई गई—धन्ना ने फिर से ठाकुर जी को भोग लगाने के लिए प्रार्थना की, लेकिन ठाकुर जी ने भोग नहीं लगाया। यह सिलसिला तीन दिन तक चलता रहा। चौथे दिन, धन्ना ने फिर से अपनी माँ से रोटियाँ और गुड़ लिया और खेत की ओर चल पड़ा। खेत में पहुँचकर उसने ठाकुर जी को पुकारा और भोग लगाने की प्रार्थना की।

जब चौथे दिन भी ठाकुर जी ने भोग नहीं लगाया, तो धन्ना ने जोर-जोर से रोते हुए कहा, “ठाकुर जी, आप तो राजा ठाकुर हैं, आपको छप्पन प्रकार के भोग चढ़ते हैं, लेकिन मैं सिर्फ बाजरे की रोटी और सांग ही दे सकता हूँ। क्या आप मेरी साधारण भोग को देखकर नजरअंदाज कर रहे हैं? मैं तीन दिन से भूखा हूँ। कृपया मुझ पर दया दिखाएँ और थोड़ा सा भोग स्वीकार करें। पंडित जी ने कहा था कि पहले ठाकुर जी को खिलाना है, फिर ही खुद खाना है। इसलिए, ठाकुर जी, पहले आप भोग लगाएं, फिर मैं भी खाऊँगा।”

धन्ना जी की निर्दोष पुकार सुनकर भगवान श्रीकृष्ण स्वयं प्रकट हुए, और धन्ना अपने सामने भगवान श्रीकृष्ण को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुआ।

भोले बालक धन्ना की पुकार पर प्रकट हुए श्रीकृष्ण

धन्नाजी की भोलेपन से की गयी पुकार सुनकर करुणानिधान व्याकुल हो गए और अपने सच्चे भक्ति के आग्रह पर साक्षत् प्रकट हो गए।जब धन्ना ने भगवान श्री कृष्ण को साक्षात देखा, तो वह अत्यंत प्रसन्न हुए, लेकिन अपनी मासूमियत और भोलेपन के कारण थोड़े नाराज भी हुए। उन्होंने भगवान से कहा, “राजा ठाकुर जी, तीन दिन हो गए, मैं आपको पुकारते-पुकारते थक गया हूँ। आप आए क्यों नहीं? मैं भी भूखा हूँ। कृपया पहले भोग लगाइए, फिर मैं बाद में आपकी सेवा करूंगा। मैं तीन दिन से भूखा हूँ और मेरे पास सिर्फ बाजरे की रोटियाँ, सांग और गुड़ हैं।”

धन्ना ने तुरंत अपनी माँ द्वारा बनाई गई बाजरे की रोटियाँ, सांग और गुड़ भगवान श्री कृष्ण को अर्पित किया। भगवान कृष्ण ने बड़े प्रेम से रोटियाँ खानी शुरू कीं। पहले रोटी खाकर, उन्होंने दूसरी रोटी उठाई। जैसे ही भगवान कृष्ण तीसरी रोटी की ओर बढ़े, धन्ना ने उनका हाथ पकड़ लिया और कहा, “प्रभु, यदि आप सारी रोटियाँ खा जाएंगे, तो मेरे लिए क्या बचेगा? मैं भी भूखा हूँ और मैंने अभी तक कुछ नहीं खाया है। कृपया दो रोटियाँ मेरे लिए छोड़ दीजिए।”

धन्ना की यह मासूमियत भरी बात सुनकर भगवान कृष्ण मुस्कुराए और कहा, “ठीक है, धन्ना, मेरा पेट भर गया है। अब तुम अपनी रोटियाँ खा सकते हो।” इसके बाद, भगवान कृष्ण ने दो बची हुई रोटियाँ धन्ना को दे दीं, जिन्हें धन्ना ने खुशी-खुशी खा लिया।

भगवान कृष्ण ने धन्ना की गायें चरानी शुरू की।

जब भगवान कृष्ण बने धन्ना के गोपाल और चराने लगे गायें

इस घटना के बाद, धन्ना ने रोजाना यही नियम बना लिया कि जब भी वह गायों को चराने खेतों में जाता, तो भगवान कृष्ण के साथ भजन और पूजा करता। एक दिन भगवान कृष्ण ने धन्ना से कहा, “धन्ना, तुम रोज़ मेरी रोटियाँ खिलाते हो, और मैं उन्हें रोज़ खाता हूँ। मुझे यह अच्छा नहीं लगता। क्या तुम मुझे कोई काम दे सकते हो?

धन्ना ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, “प्रभु, क्या मैंने कोई गलती की है? आप इस तरह की बातें क्यों कर रहे हैं?” भगवान कृष्ण ने उत्तर दिया, “धन्ना, ऐसा कुछ नहीं है। मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि मुझे तुम्हारी मुफ्त की रोटियाँ खाकर अच्छा नहीं लगता। तुम मुझे कोई काम बताओ, मैं वह काम करूंगा, और तुम मुझे रोटियाँ खिलाते रहोगे।”

धन्ना ने सोचा, “प्रभु, आप तो राजा ठाकुर हैं, आप क्या काम कर सकते हैं? और मैं एक छोटा सा बालक हूँ, मैं आपको क्या काम दे सकता हूँ?” भगवान कृष्ण ने कहा, “धन्ना, मुझे गायों को चराने का बहुत अनुभव है। मैंने अपने बाबा के पास बहुत दिनों तक गायों को चराया है। मैं तुम्हारी रोटियों के बदले तुम्हारी गायों को चरा दिया करूँगा ।”

धन्ना ने कहा, “ठीक है, प्रभु, जैसी आपकी इच्छा।” इस प्रकार, भगवान कृष्ण ने धन्ना की गायों को चराना शुरू किया।

एक दिन पंडित जी, जिन्होंने धन्ना को शालिग्राम का पत्थर दिया था, धन्ना के घर पर आए। धन्ना ने पंडित जी को देख कर उन्हें प्रणाम किया। पंडित जी ने हँसी-हँसी में धन्ना से पूछा, “तुम्हारे राजा ठाकुर कहाँ हैं? उनकी सेवा ठीक से कर रहे हो न?”

धन्ना ने उत्तर दिया, “ठाकुर जी अभी गायें चराने गए हैं। वह रोज इसी समय गायें चराने जाते हैं।”

पंडित जी ने हंसते हुए कहा, “अरे, तुम अभी भी बच्चे ही हो, कैसी बात करते हो!” धन्ना के माता-पिता ने भी कहा, “वह रोज ऐसा ही कहता है। सुबह गायें चराने ले जाता है और शाम को वापस घर ले आता है।”

धन्ना ने दुखी होकर कहा, “कोई मेरी बात पर विश्वास नहीं करता।”

पंडित जी ने पूछा, “तो वह पत्थर कहाँ है, जिसे मैंने तुम्हें दिया था?”

धन्ना ने मुस्कुराते हुए कहा, “वही पत्थर तो गायें चराने गया है।” धन्ना ने पंडित जी को विस्तार से बताया कि कैसे भगवान कृष्ण ने उस पत्थर में प्रकट होकर रोज उनके साथ भोजन करते हैं और गायें भी चराते हैं।

पंडित जी को विश्वास नहीं हुआ, तो धन्ना ने आग्रह किया, “आप शाम को मेरे साथ चलें। मैं आपको भगवान से मिलवाऊंगा।”

धन्ना की भक्ति के कारण गुरुजी को भगवान कृष्ण का दर्शन हुआ। धन्ना की भक्ति से प्रसन्न होकर कृष्ण प्रकट हुए, और दूर खड़े गुरुजी ने आंखों में आंसू लेकर धन्ना को प्रणाम किया।

धन्ना की भक्ति से गुरु जी को हुआ श्रीकृष्ण का साक्षात्कार

शाम को, जब धन्ना अपने गुरु जी को लेकर जंगल में गए, तो उन्होंने देखा कि गायें चर रही थीं। गुरु जी ने धन्ना से पूछा, “तुम्हारे ठाकुर जी कहाँ हैं? हमें तो दिखाई नहीं दे रहे।”

धन्ना ने ठाकुर जी की ओर इशारा करते हुए कहा, “ठाकुर जी गायों के पीछे चल रहे हैं, आपको दिख रहे हैं।”

गुरु जी ने उत्तर दिया, “हमें तो नहीं दिख रहे।”

धन्ना तुरंत भगवान कृष्ण के पास गया और विनम्रता से प्रार्थना की, “प्रभु, कृपया अपने गुरु जी को आपके दर्शन दे दीजिए।”

भगवान कृष्ण ने उत्तर दिया, “हम तुम्हारे सखा हैं, हम केवल तुम्हें ही दिखेंगे।”

धन्ना ने उत्तर दिया, “ऐसा मत कहिए। आप और मुझे मिलाने वाले हमारे गुरु जी ही हैं। उन्होंने ही हमें आपसे मिलवाया था।”

धन्ना की बात सुनकर भगवान कृष्ण प्रसन्न हुए और प्रकट हो गए। यह देख, दूर खड़े गुरु जी की आँखों में आँसू भर आए और उन्होंने धन्ना को प्रणाम करते हुए कहा, “धन्ना, तेरी भक्ति धन्य है। तूने पत्थर में से भगवान को प्रकट कर दिया।”

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