By BhajanSparsh
Sep 21, 2024
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पितृपक्ष, हर साल के आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से चतुर्दशी तक मनाया जाता है। यह समय पितरों के प्रति श्रद्धा और मोक्ष दिलाने का है।
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महाभारत काल में सूर्यपुत्र कर्ण की आत्मा के स्वर्ग पहुँचने के बाद श्राद्ध की परंपरा की शुरुआत हुई थी। आइए, इसके रोचक इतिहास के बारे में जानें।
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महाभारत काल में सूर्यपुत्र कर्ण की आत्मा स्वर्ग पहुंची। वहां उन्हें भोजन के स्थान पर सोने का ढेर मिला।
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कर्ण ने इंद्र देव से पूछा कि उन्हें भोजन के बजाय स्वर्ण क्यों दिया गया। इंद्र ने बताया कि उन्होंने अपने पितरों के लिए कभी भी भोजन दान या तर्पण नहीं किया।
कर्ण ने स्वीकार किया कि उन्हें अपने पूर्वजों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, इसलिए अनजाने में वह पितरों के लिए दान और तर्पण नहीं कर पाए।
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इंद्र देव ने कर्ण को अपनी भूल सुधारने के लिए 16 दिन के लिए पृथ्वी पर भेजा, जहाँ उन्होंने अपने पितरों के मोक्ष के लिए विधिपूर्वक श्राद्ध किया।
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माना जाता है कि तभी से पितृपक्ष के 16 दिनों में श्राद्ध करने की परंपरा का प्रचलन शुरू हुआ, जो आज भी अनवरत चल रही है।
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